पांच हजार की यात्रा कर यूरोप, अफ्रिका से आए अबाबिल पक्षी, पुल के नीचे बसाई कॉलोनी

afzal Tadavi
0
- गिली मिट्टी, कपास का उपयोग कर अपना घोसला बनाते हैं अबाबिल, जून में लौटते हैं स्वदेश बुरहानपुर। शहर के पास ताप्ती नदी पुल के पास अबाबिल नाम के पक्षियों ने अपनी कॉलोनी बसा ली है। यह पांच हजार की यात्रा पूरी कर यूरोप और साउथ अफ्रिका से यहां पहुंचे हैं। इनकी विशेषता है कि यह अपने घरोंदे तिनकों से नहीं बनाते हैं। अपना घोसला बनाने के लिए अबाबिल पक्षी गिली मिट्टी और कपास का उपयोग करते हैं। बताया जाता है कि इनका घोंसले इतने मजबूत होते हैं कि इन्हें तोडऩे पर भवन का प्लास्टर भी टूट जाता है। इतिहासकार, जानकार कमरूद्दीन फलक ने अबाबिल पक्षियों के बारे में बताया कि अबाबिल अरबी का शब्द है। इसको भारत में भी अबाबिल के नाम से जानते है। इसे आजाद पक्षी की उपाधि मिली है। काली चीडिय़ा के नाम से भी जानते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम हुंडई निंडाय है। इनकी अस्सी से ज्यादा प्रजाति पाई जाती है। ये पक्षी हमारे यहां यूरोप और साउथ अफ्रिका से आता है। सितंबर, अक्टूबर में पक्षी आते हैं। जून से पहले चले जाते हैं। इस पक्षी की विशेषता है कि दूसरे पक्षियों की तरह तिनके से घोसलना नहीं बनाते हैं। गिली मिट्टी, कपास का इस्तेमाल करता है। सूखने के बाद इतना पक्का होता है कि पुरातत्व स्मारक का प्लास्टर उखड़ जाता है। ये पक्षी पर्यावरण के लिए लाभदायक है। उड़ते-उड़ते कीड़े खाता है। जमीन पर नहीं चलता है। इसको पाला भी नहीं जा सकता है। 50 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से उड़ता है। एक दिन में 300 किमी तक उड़ान भर सकता है। पांच हजार किमी की यात्रा कर भारत आता है। पूरे विश्व में इस पक्षी को पहचाना जाता है।

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)